उस को भड़काऊ न दामन की हवाएँ दे कर
शोला-ए-इश्क़ मिरे दिल में दबा रहने दो
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नाले मिरे जब तक मिरे काम आते रहेंगे
अजीब उलझन में तू ने डाला मुझे भी ऐ गर्दिश-ए-ज़माना
वफ़ा करो जफ़ा मिले भला करो बुरा मिले
दिल ही रह-ए-तलब में न खोना पड़ा मुझे
अश्क वो है जो रहे आँख में गौहर बन कर
एक ही अंजाम है ऐ दोस्त हुस्न ओ इश्क़ का
दी उस ने मुझ को जुर्म-ए-मोहब्बत की वो सज़ा
आँसुओं के तूफ़ाँ में बिजलियाँ दबी रखना
सब्र-ओ-क़रार-ए-दिल मिरे जाने कहाँ चले गए
हर शाख़-ए-चमन है अफ़्सुर्दा हर फूल का चेहरा पज़मुर्दा
थीं तुम्हारी जिस पे नवाज़िशें कभी तुम भी जिस पे थे मेहरबाँ
फ़रेब-ख़ुर्दा है इतना कि मेरे दिल को अभी