कुछ इस तरह के बहारों ने गुल खिलाए हैं
कि अब तो फ़स्ल-ए-बहाराँ से डर लगे है मुझे
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Anwar Masood
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Wasi Shah
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
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एक ही अंजाम है ऐ दोस्त हुस्न ओ इश्क़ का
नाले मिरे जब तक मिरे काम आते रहेंगे
दी उस ने मुझ को जुर्म-ए-मोहब्बत की वो सज़ा
रह-ए-वफ़ा में लुटा कर मता-ए-क़ल्ब-ओ-जिगर
थीं तुम्हारी जिस पे नवाज़िशें कभी तुम भी जिस पे थे मेहरबाँ
आँसुओं के तूफ़ाँ में बिजलियाँ दबी रखना
माइल-ए-लुत्फ़ है आमादा-ए-बे-दाद भी है
जो बा-ख़बर थे वो देते रहे फ़रेब मुझे
मुझ को मंज़ूर नहीं इश्क़ को रुस्वा करना
फ़रेब-ख़ुर्दा है इतना कि मेरे दिल को अभी
वफ़ा करो जफ़ा मिले भला करो बुरा मिले