अश्क वो है जो रहे आँख में गौहर बन कर
और टूटे तो बिखर जाए नगीनों की तरह
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(817) Peoples Rate This
कहाँ जाएँ छोड़ के हम उसे कोई और उस के सिवा भी है
जो बा-ख़बर थे वो देते रहे फ़रेब मुझे
अजीब उलझन में तू ने डाला मुझे भी ऐ गर्दिश-ए-ज़माना
हर शाख़-ए-चमन है अफ़्सुर्दा हर फूल का चेहरा पज़मुर्दा
लज़्ज़त-ए-दर्द मिली जुर्म-ए-मोहब्बत में उसे
मिरे दिल पे हाथ रख कर मुझे देने वाले तस्कीं
इंसाफ़ के पर्दे में ये क्या ज़ुल्म है यारो
तुम्हारी बज़्म की यूँ आबरू बढ़ा के चले
उस को भड़काऊ न दामन की हवाएँ दे कर
नाले मिरे जब तक मिरे काम आते रहेंगे
हाँ ये भी तरीक़ा अच्छा है तुम ख़्वाब में मिलते हो मुझ से