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माइल-ए-लुत्फ़ है आमादा-ए-बे-दाद भी है - अख़तर मुस्लिमी कविता - Darsaal

माइल-ए-लुत्फ़ है आमादा-ए-बे-दाद भी है

माइल-ए-लुत्फ़ है आमादा-ए-बे-दाद भी है

वो सरापा-ए-मोहब्बत सितम-ईजाद भी है

शब-ए-तन्हाई भी है साथ तिरी याद भी है

दिल का क्या हाल कहूँ शाद भी नाशाद भी है

दौलत-ए-ग़म से हर इक गोशा है इस का मामूर

दिल की दुनिया मिरी आबाद भी बर्बाद भी है

बे-सबब तो नहीं एहसास ख़लिश का मुझ को

भूलने वाले तिरे दिल में मिरी याद भी है

क्यूँ न आसाँ हो रह-ए-इश्क़ कि मेरे हम-राह

जज़्बा-ए-'क़ैस' भी है हिम्मत-ए-'फ़रहाद' भी है

जल गया अपना नशेमन मगर अफ़सोस ये है

फूँकने वालों में इक बर्क़-ए-चमन-ज़ाद भी है

मेरा विज्दान मुहर्रिक है मिरे नग़्मों का

तब्-ए-मौज़ूँ मिरी पाबंद भी आज़ाद भी है

क्या बताऊँ मैं तुम्हें क्या है नवा-ए-'अख़्तर'

नग़्मे का नग़्मा है फ़रियाद की फ़रियाद भी है

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