Heart Broken Poetry of Akhtar Muslimi
नाम | अख़तर मुस्लिमी |
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अंग्रेज़ी नाम | Akhtar Muslimi |
थीं तुम्हारी जिस पे नवाज़िशें कभी तुम भी जिस पे थे मेहरबाँ
सुन के रूदाद-ए-अलम मेरी वो हँस कर बोले
सब्र-ओ-क़रार-ए-दिल मिरे जाने कहाँ चले गए
मुझ को मंज़ूर नहीं इश्क़ को रुस्वा करना
हर शाख़-ए-चमन है अफ़्सुर्दा हर फूल का चेहरा पज़मुर्दा
एक ही अंजाम है ऐ दोस्त हुस्न ओ इश्क़ का
अश्क वो है जो रहे आँख में गौहर बन कर
तुम अपनी ज़बाँ ख़ाली कर के ऐ नुक्ता-वरो पछताओगे
शिकवा इस का तो नहीं है जो करम छोड़ दिया
माइल-ए-लुत्फ़ है आमादा-ए-बे-दाद भी है
किस को कहते हैं जफ़ा क्या है वफ़ा याद नहीं
दिल ही रह-ए-तलब में न खोना पड़ा मुझे