सू-ए-मक़्तल कोई दम साथ चले
सू-ए-मक़्तल कोई दम साथ चले
जिस को रखना हो भरम साथ चले
इसी हसरत में कटी राह-ए-हयात
कोई दो-चार क़दम साथ चले
ख़ार-ज़ारों में जहाँ कोई न था
बन के हम-दम तिरे ग़म साथ चले
हम से रिंदों का ठिकाना क्या है
तुम कहाँ शैख़-ए-हरम साथ चले
वादी-ए-शब की कठिन राहों में
लोग कतरा गए कम साथ चले
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