रौनक़ ही नहीं उस की हम रूह-ओ-रवाँ भी हैं

रौनक़ ही नहीं उस की हम रूह-ओ-रवाँ भी हैं

लेकिन हमें दुनिया की ख़ातिर पे गराँ भी हैं

इक तेरे ही कूचे पर मौक़ूफ़ नहीं है कुछ

हर गाम हैं ताज़ीरें हम लोग जहाँ भी हैं

गुलचीं को नहीं शायद इस राज़ से आगाही

शबनम में नहाए गुल शो'लों की ज़बाँ भी हैं

खाते थे क़सम जिन के किरदार-ओ-अमल की हम

शामिल सफ़-ए-आ'दा में वो हम-नफ़साँ भी हैं

सच कहते हो हम ऐसे ज़र्रों की हक़ीक़त क्या

अब कौन कहे तुम से हम संग-ए-गिराँ भी हैं

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Raunaq Hi Nahin Uski Hum Ruh-o-rawan Bhi Hain In Hindi By Famous Poet Akhtar Lakhnvi. Raunaq Hi Nahin Uski Hum Ruh-o-rawan Bhi Hain is written by Akhtar Lakhnvi. Complete Poem Raunaq Hi Nahin Uski Hum Ruh-o-rawan Bhi Hain in Hindi by Akhtar Lakhnvi. Download free Raunaq Hi Nahin Uski Hum Ruh-o-rawan Bhi Hain Poem for Youth in PDF. Raunaq Hi Nahin Uski Hum Ruh-o-rawan Bhi Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Raunaq Hi Nahin Uski Hum Ruh-o-rawan Bhi Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.