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देखो उस ने क़दम क़दम पर साथ दिया बेगाने का - अख्तर लख़नवी कविता - Darsaal

देखो उस ने क़दम क़दम पर साथ दिया बेगाने का

देखो उस ने क़दम क़दम पर साथ दिया बेगाने का

'अख़्तर' जिस ने अहद किया था तुम से साथ निभाने का

आज हमारे क़दमों में है काहकशाँ शहर-ए-महताब

कल तक लोग कहा करते थे ख़्वाब उसे दीवाने का

तेरे लब-ओ-रुख़्सार के क़िस्से तेरे क़द-ओ-गेसू की बात

सामाँ हम भी रखते हैं तन्हाई में दिल बहलाने का

तुम भी सुनते तो रो देते हम भी कहते तो रोते

जान के हम ने छोड़ दिया है इक हिस्सा अफ़्साने का

कुछ तो है जो अपनाया है हम ने कू-ए-मलामत को

वैसे और तरीक़ा भी था 'अख्तर' दिल बहलाने का

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