Sad Poetry of Akhtar Imam Rizvi
नाम | अख़तर इमाम रिज़वी |
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अंग्रेज़ी नाम | Akhtar Imam Rizvi |
अब भी आती है तिरी याद प इस कर्ब के साथ
वो ख़ुद तो मर ही गया था मुझे भी मार गया
जुर्म-ए-हस्ती की सज़ा क्यूँ नहीं देते मुझ को
जो संग हो के मुलाएम है सादगी की तरह
हर बुत यहाँ टूटे हुए पत्थर की तरह है
दिल वो प्यासा है कि दरिया का तमाशा देखे
चाँदनी के हाथ भी जब हो गए शल रात को
अश्क जब दीदा-ए-तर से निकला
अपना दुख अपना है प्यारे ग़ैर को क्यूँ उलझाओगे