एज़रा-पउंड की मौत पर
तुझ को किस फूल का कफ़न हम दें
तू जुदा ऐसे मौसमों में हुआ
जब दरख़्तों के हाथ ख़ाली हैं
इंतिज़ार-ए-बहार भी करते
दामन-ए-चाक से अगर अपने
कोई पैमान फूल का होता
आ तुझे तेरे सब्ज़ लफ़्ज़ों में
दफ़्न कर दें कि तेरे फ़न जैसी
दहर में कोई नौ-बहार नहीं
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