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तर्क-ए-वादा कि तर्क-ए-ख़्वाब था वो - अख़्तर हुसैन जाफ़री कविता - Darsaal

तर्क-ए-वादा कि तर्क-ए-ख़्वाब था वो

तर्क-ए-वादा कि तर्क-ए-ख़्वाब था वो

काम सब हो चुका जो करना था

भर चुका जाम-ए-शर्त-ए-वस्ल जिसे

सुब्ह तक, आँसुओं से भरना था

वो सुख़न उस के मुद्दआ में नहीं

मुझ को जिस बात से मुकरना था

कोई तक़सीम-ए-कार-ए-महर-ओ-नुजूम

या हिसाब-ए-शब-ए-नुज़ूल कोई

दश्त-ए-ला-हासिली की महदूदात

शहर-ए-महरम का अर्ज़ ओ तूल कोई

कुछ नहीं दरमियाँ जज़ा न सज़ा

संग, दुश्नाम, दाग़, फूल कोई

उस तरफ़ अब रुख़-ए-तअल्लुक़ है

जहाँ सूद-ओ-ज़ियान-ए-ज़ात नहीं

डर नहीं नींद टूट जाने का

पास-ए-वादा की एहतियात नहीं

मुझ को जिस बात से मुकरना था

उस के दावे में अब वो बात नहीं

भर चुका जाम-ए-शर्त-ए-वस्ल जिसे

सुब्ह तक, आँसुओं से भरना था

तर्क-ए-वादा कि तर्क-ए-ख़्वाब था वो

काम सब हो चुका जो करना था

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