मक़्तल की बाज़दीद
बला की प्यास उस की आँख में है
हिजाज़ की सरज़मीं पे इस साल इस क़दर बारिशें हुई हैं कि ख़ुश्क तालाब
ख़ून-ए-नाहक़ से भर गए हैं
लहू की प्यास उस की आँख में है
नफ़स में बारूद जिस की क़ातिल सदा का शोला
क़दम क़दम तहनियत के रस्ते रवाँ हुआ तो वो नख़्ल जिस की जड़ें ज़मीनों के
दर्द में थीं
झुका कुछ ऐसे कि जैसे हाल-ए-रुकू'अ में हो
उदास ताइर जो शाख़ पर थे
जो गुम्बदों की पनाह में थे
जो जालियों के तवाफ़ में थे
डरे हुए आसमान-ए-हिजरत की टहनियों से
नशेब में उस ज़मीन-ए-मक़्तल को देखते हैं
जहाँ वो नख़्ल इस तरह गिरा है कि जैसे हाल-ए-सुजूद में हो
इक और तालाब ताज़ा बारिश से भर गया है
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