तमाम हर्फ़ मिरे लब पे आ के जम से गए
न जाने मैं कहा क्या और उस ने समझा क्या
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(849) Peoples Rate This
होंटों पे क़र्ज़-ए-हर्फ़-ए-वफ़ा उम्र भर रहा
ख़्वाब-महल में कौन सर-ए-शाम आ कर पत्थर मारता है
मैं उस का नाम घुले पानियों पे लिखता क्या
मिरी निगाह का पैग़ाम बे-सदा जो हुआ
मैं ने जो ख़्वाब अभी देखा नहीं है 'अख़्तर'
चेहरे के ख़द्द-ओ-ख़ाल में आईने जड़े हैं
दिल में इक जज़्बा-ए-बेदाद-ओ-जफ़ा ही होगा
वो शायद कोई सच्ची बात कह दे
दर्द की दौलत-ए-नायाब को रुस्वा न करो
कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए
रुख़्सत-ए-रक़्स भी है पाँव में ज़ंजीर भी है
कुछ नक़्श हुवैदा हैं ख़यालों की डगर से