चमन के रंग-ओ-बू ने इस क़दर धोका दिया मुझ को
कि मैं ने शौक़-ए-गुल-बोसी में काँटों पर ज़बाँ रख दी
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मिरी गली के मकीं ये मिरे रफ़ीक़-ए-सफ़र
तूफ़ाँ से क़र्या क़र्या एक हुए
ज़माना अपनी उर्यानी पे ख़ूँ रोएगा कब तक
वो रंग-ए-तमन्ना है कि सद-रंग हुआ हूँ
बारहा ठिठका हूँ ख़ुद भी अपना साया देख कर
मैं हर्फ़ देखूँ कि रौशनी का निसाब देखूँ
मेरे लहू में उस ने नया रंग भर दिया
हवा में ख़ुशबुएँ मेरी पहचान बन गई थीं
ये सरगुज़िश्त-ए-ज़माना ये दास्तान-ए-हयात
वो शायद कोई सच्ची बात कह दे
यक-ब-यक मौसम की तब्दीली क़यामत ढा गई
हम अक्सर तीरगी में अपने पीछे छुप गए हैं