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वो जो दीवार-ए-आश्नाई थी - अख़्तर होशियारपुरी कविता - Darsaal

वो जो दीवार-ए-आश्नाई थी

वो जो दीवार-ए-आश्नाई थी

अपनी ही ज़ात की इकाई थी

मैं सर-ए-दश्त-ए-जाँ था आवारा

और घर में बहार आई थी

मैले कपड़ों का अपना रंग भी था

फिर भी क़िस्मत में जग-हँसाई थी

अब तो आँखों में अपना चेहरा है

कभी शीशे से आश्नाई थी

अपनी ही ज़ात में था मैं महफ़ूज़

और फिर ख़ुद ही से लड़ाई थी

अपनी आवाज़ से भी डरता था

हाए क्या चीज़ आश्नाई थी

ज़िंदगी गर्द गर्द थी 'अख़्तर'

जाने लुट कर कहाँ से आई थी

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Wo Jo Diwar-e-ashnai Thi In Hindi By Famous Poet Akhtar Hoshiyarpuri. Wo Jo Diwar-e-ashnai Thi is written by Akhtar Hoshiyarpuri. Complete Poem Wo Jo Diwar-e-ashnai Thi in Hindi by Akhtar Hoshiyarpuri. Download free Wo Jo Diwar-e-ashnai Thi Poem for Youth in PDF. Wo Jo Diwar-e-ashnai Thi is a Poem on Inspiration for young students. Share Wo Jo Diwar-e-ashnai Thi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.