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तूफ़ाँ से क़र्या क़र्या एक हुए - अख़्तर होशियारपुरी कविता - Darsaal

तूफ़ाँ से क़र्या क़र्या एक हुए

तूफ़ाँ से क़र्या क़र्या एक हुए

फिर रेत से चेहरा चेहरा एक हुए

चाँद उभरते ही उजली किरनों से

ऊपर का कमरा कमरा एक हुए

अलमारी में तस्वीरें रखता हूँ

अब बचपन और बुढ़ापा एक हुए

उस की गली के मोड़ से गुज़रे क्या थे

सब राही रस्ता रस्ता एक हुए

दीवार गिरी तो अंदर सामने था

दरवाज़ा और दरीचा एक हुए

जब वो पौदों को पानी देता था

पस-मंज़र और नज़ारा एक हुए

कल आँख-मिचोली के खेल में 'अख़्तर'

मैं और पेड़ों का साया एक हुए

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