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हम उस से इश्क़ का इज़हार कर के देखते हैं - अख़्तर हाशमी कविता - Darsaal

हम उस से इश्क़ का इज़हार कर के देखते हैं

हम उस से इश्क़ का इज़हार कर के देखते हैं

किया है जुर्म तो इक़रार कर के देखते हैं

है इश्क़ जंग तो फिर जीत लें चलो हम लोग

है दरिया आग का तो पार कर के देखते हैं

है कोहसार तो नहरें निकाल दें इस से

है रेगज़ार तो गुलज़ार कर के देखते हैं

हम उस को देखना चाहें तो किस तरह देखें

सो उस की याद को किरदार कर के देखते हैं

वो होश-मंद अगर है तो कर दें दीवाना

वो बे-ख़बर है तो हुशियार कर के देखते हैं

हमारे सर पे तो आती नहीं कोई दस्तार

सो अपने सर को ही दस्तार कर के देखते हैं

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