कीजिए किस किस से आख़िर ना-शनासी का गिला
जब किसी ने भी निगाह-ए-मो'तबर डाली नहीं
Habib Jalib
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Parveen Shakir
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ख़ुद-फ़रामोश जो पाया है मुझे दुनिया ने
यूँ ख़ुद को ख़्वाहिशात के अक्सर दिखाए रंग
बरसों से इस में फल नहीं आए तो क्या हुआ
आसाँ नहीं इंसाफ़ की ज़ंजीर हिलाना
चाहो तो मिरा दुख मिरा आज़ार न समझो