बरसों से इस में फल नहीं आए तो क्या हुआ
साया तो अब भी सेहन के कोहना शजर में है
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ख़ुद-फ़रामोश जो पाया है मुझे दुनिया ने
चाहो तो मिरा दुख मिरा आज़ार न समझो
यूँ ख़ुद को ख़्वाहिशात के अक्सर दिखाए रंग
कीजिए किस किस से आख़िर ना-शनासी का गिला
आसाँ नहीं इंसाफ़ की ज़ंजीर हिलाना