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जिस के दिल में कोई अरमान नहीं होता है - अख़्तर आज़ाद कविता - Darsaal

जिस के दिल में कोई अरमान नहीं होता है

जिस के दिल में कोई अरमान नहीं होता है

मेरी नज़रों में वो इंसान नहीं होता है

ख़ुद-कुशी जुर्म समझते हैं ज़माने वाले

जान देना कोई आसान नहीं होता है

हर घड़ी दिल में रहा करता है यादों का हुजूम

ये वो घर है कभी वीरान नहीं होता है

भूली-बिसरी हुई यादें भी रुला देती हैं

बे-सबब कोई परेशान नहीं होता है

वहशत-ए-दिल का तक़ाज़ा है कि बस प्यार करो

प्यार के सौदे में नुक़सान नहीं होता है

उम्र-भर के लिए आ जाओ मिरे दिल में रहो

अपने घर में कोई मेहमान नहीं होता है

हुस्न-ए-अख़्लाक़ से माँ-बाप की ख़िदमत करना

फ़र्ज़ तो होता है एहसान नहीं होता है

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