तश्कीक ने ईक़ान से महरूम रखा
तदक़ीक़ ने इरफ़ान से महरूम रखा
अल-क़िस्सा न दर पे हो हमारे कि हमें
अल्लाह ने ईमान से महरूम रखा
Gulzar
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Ahmad Faraz
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आफ़तों में घिर गया हूँ ज़ीस्त से बे-ज़ार हूँ
मोहब्बत! ऐ कि तू देवी है ग़म की रोए जा
नसीम, फूलों की रौनक़, खिले हुए तारे
जाँ-सिपारी के भी अरमाँ ज़िंदगी की आस भी
कोई जंगल में गा रहा है गीत
इलाज-ए-'अख़्तर'-ए-ना-काम क्यूँ नहीं मुमकिन
कुछ फ़ैज़ तो मैं ने भी लुटाया बारे
बहार आई ज़माना हुआ ख़राबाती
मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों में
सुनने वाले फ़साना तेरा है
अब कहाँ हूँ कहाँ नहीं हूँ मैं