साँसों में लिए कर्ब-ओ-बला जीता हूँ
सिलते नहीं जो ज़ख़्म उन्हें सीता हूँ
जी भर के ज़माने ने पिया ख़ूँ मेरा
बाक़ी जो बचा उस को मैं ख़ुद पीता हूँ
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चीर कर सीने को रख दे गर न पाए ग़म-गुसार
ये साग़र-ए-ग़म की गर्दिश है सहबा-ए-तरब का दौर है ये
सीना ख़ूँ से भरा हुआ मेरा
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या
हमेशा वक़्त-ए-सहर जब क़रीब होता है
क़ल्ब ज़िंदा है लफ़्ज़ हैं बे-जान
इस मईशत के साए में हमदम
गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी
ये आरज़ुएँ ये जोश-ए-अलम ये सैल-ए-नशात
यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था