फिरती हूँ लिए सोज़-ए-हयात आँखों में
है जल्वा-नुमा ग़म की बरात आँखों में
उम्र अपनी कुछ इस तरह बिताई मैं ने
जिस तरह कोई काट दे रात आँखों में
Jaun Eliya
Gulzar
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Rahat Indori
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(749) Peoples Rate This
हमेशा वक़्त-ए-सहर जब क़रीब होता है
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
जो दाग़ बन के तमन्ना तमाम हो जाए
उन में रहती थी इक हँसी बन कर
कुछ फ़ैज़ तो मैं ने भी लुटाया बारे
दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
दिन मुरादों के ऐश की रातें
सुनने वाले फ़साना तेरा है
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
माज़ी की रिवायात में गड़ जाते हैं
अब कहाँ हूँ कहाँ नहीं हूँ मैं