कुछ फ़ैज़ तो मैं ने भी लुटाया बारे
कुछ रंग तो महफ़िल में जमाया बारे
सरमाया-ए-इबरत हूँ ज़माने के लिए
दुनिया के कसी काम तो आया बारे
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आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया
यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था
आब-ए-दरिया में है जिस तरह रवानी पिन्हाँ
गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
शोले भड़काओ देखते क्या हो
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
हाए क्या क़हर थी वो पहली नज़र
फूल सूँघे जाने क्या याद आ गया
कोई रोए तो मैं बे-वजह ख़ुद भी रोने लगता हूँ
है ग़म-ए-रोज़गार का मौज़ूअ
ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ
कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं