कुछ अपनी सताइश में मज़ा आता है
कुछ इज्ज़-ओ-नियाइश में मज़ा आता है
लज़्ज़त की तलाश आह कहाँ ले आई
ज़ख़्मों की नुमाइश में मज़ा आता है
Habib Jalib
Allama Iqbal
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Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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इक टीस कलेजे को मसलती ही रही
फुवार, अब्र, परिंदों के गीत, मस्त हवा
सच तो ये है जहाँ में मेरे ब'अद
इलाज-ए-'अख़्तर'-ए-ना-काम क्यूँ नहीं मुमकिन
ख़ूँ-भरे जाम उंडेलता हूँ मैं
दिल को बर्बाद किए जाती है
ग़म-ए-दिल का इलाज दुनिया में
दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
आफ़तों में घिर गया हूँ ज़ीस्त से बे-ज़ार हूँ
कर दिया हाफ़िज़े में हश्र बपा
सुना के अपने ऐश-ए-ताम की रूदाद के टुकड़े
ये हसीन फ़ितरत के हुस्न का अनीला-पन