इस तरह तबीअत कभी शैदा न हुई
ये आग मोहब्बत में भी पैदा न हुई
अल्लाह-रे माबूद-ए-एहसास-ओ-ख़याल
वो सुब्ह जो मतला पे हुवैदा न हुई
Wasi Shah
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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Habib Jalib
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
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कर दिया हाफ़िज़े में हश्र बपा
एक तस्वीर खींच दी गोया
तब्अ इशरत-पसंद रखता हूँ
ये आज की दुनिया भी है मरने वाली
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
कुछ अपनी सताइश में मज़ा आता है
तिरी नाज़ुक और लाँबी उँगलियाँ
पिहना-ए-आसमाँ पे हैं तारी उदासियाँ
तश्कीक ने ईक़ान से महरूम रखा
तक़दीर-ए-अज़ल आह तो भरती होगी
कोई रोए तो मैं बे-वजह ख़ुद भी रोने लगता हूँ
वो बहर-ए-कर्ब-ओ-अलम का ख़ुलासा है यकसर