इस हाथ से जो कुछ मैं लिया करता हूँ
उस हाथ से फिर दे भी दिया करता हूँ
अन्फ़ास की क़ीमत हैं ये मेरे अशआर
मैं क़र्ज़ से आज़ाद जिया करता हूँ
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ये आज की दुनिया भी है मरने वाली
लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या
तिरा आसमाँ नावकों का ख़ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना
कुछ फ़ैज़ तो मैं ने भी लुटाया बारे
सुना के अपने ऐश-ए-ताम की रूदाद के टुकड़े
हल्की हल्की फुवार के दौरान में
कुछ अपनी सताइश में मज़ा आता है
क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी
इक टीस कलेजे को मसलती ही रही
जिन को है ऐश-ए-दिल मयस्सर, वो
ग़म-ज़दा हैं मुब्तला-ए-दर्द हैं नाशाद हैं
सदा कुछ ऐसी मिरे गोश-ए-दिल में आती है