ये साग़र-ए-ग़म की गर्दिश है सहबा-ए-तरब का दौर है ये
क्या ख़ूब नया अंदाज़ है ये! क्या ख़ूब निराला तौर है ये
फ़रियाद भी है ये नग़्मा भी ये शेर भी है अफ़्साना भी
ये रक़्स नहीं ये रक़्स नहीं कुछ और है ये कुछ और है ये
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
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Gulzar
Jaun Eliya
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Habib Jalib
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
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एक तस्वीर खींच दी गोया
उन में रहती थी इक हँसी बन कर
ये मुलाक़ात लूटे लेती है
इलाही उस को मोहब्बत से कुछ तअल्लुक़ है
कुछ फ़ैज़ तो मैं ने भी लुटाया बारे
कुछ अपनी सताइश में मज़ा आता है
गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
आसूदगी-ए-ज़ात नहीं हो सकती
ये बोसीदा फटी गुदड़ी ये सूराख़ों भरी कमली
झूमती है फ़ज़ा-ए-दश्त-ओ-जबल
मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है
इस रुपहली शराब-ए-नूरीं से