वो दिल नहीं रहा वो तबीअत नहीं रही
वो शब को ख़ून रोने की आदत नहीं रही
महसूस कर रहा हूँ मैं जीने की तल्ख़ियाँ
शायद मुझे किसी से मोहब्बत नहीं रही
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तश्कीक ने ईक़ान से महरूम रखा
बातें करने में फूल झड़ते हैं
कर दिया हाफ़िज़े में हश्र बपा
आब-ए-दरिया में है जिस तरह रवानी पिन्हाँ
बहार आई ज़माना हुआ ख़राबाती
तस्कीन-ए-ग़म-ए-दिल के लिए जीता हूँ
जीने की ब-ज़ाहिर नहीं कुछ आस हमें
ये आरज़ुएँ ये जोश-ए-अलम ये सैल-ए-नशात
गोशा-ए-बाग़ की मुलाक़ातें
उन में रहती थी इक हँसी बन कर
जा रहा था मैं सर झुकाए हुए
शोले भड़काओ देखते क्या हो