उजड़ी दुनिया को बसाया है ज़रा देखो तो
ग़म की महफ़िल को सजाया है ज़रा देखो तो
चश्म-ए-गिर्यां, दिल-ए-पुर-ख़ूँ, जिगर-ए-ज़ख़्म-आलूद
मैं ने इक बाग़ लगाया है ज़रा देखो तो
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सुब्ह की तनवीर बन कर आई वो नाज़ुक-ख़िराम
कुछ फ़ैज़ तो मैं ने भी लुटाया बारे
जब से मुँह को लग गई 'अख़्तर' मोहब्बत की शराब
चाँदनी, तारे, अब्र के टुकड़े
रात को बैठ कर लब-ए-दरिया
दिल-ए-हसरत-ज़दा में एक शोला सा भड़कता है
सीना ख़ूँ से भरा हुआ मेरा
जीने की ब-ज़ाहिर नहीं कुछ आस हमें
जी को नाहक़ निढाल करते हो
साँसों में लिए कर्ब-ओ-बला जीता हूँ
ग़म-ए-दिल का इलाज दुनिया में
जो दाग़ बन के तमन्ना तमाम हो जाए