सुब्ह की तनवीर बिन कर आई वो नाज़ुक-ख़िराम
हँस के बोली मेरे बादा-ख़्वार शाएर को सलाम
ये कहा और कह के यूँ नज़रों से ओझल हो गई
जैसे छुप जाए अँधेरी रात में रंगीन शाम
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अपनी बहार पे हँसने वालो कितने चमन ख़ाशाक हुए
ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं
दिल के अरमान दिल को छोड़ गए
ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम
क़सम इन आँखों की जिन से लहू टपकता है
सच तो ये है जहाँ में मेरे ब'अद
हुस्न की दास्ताँ बना डाला
इस में कोई मिरा शरीक नहीं
जाँ-सिपारी के भी अरमाँ ज़िंदगी की आस भी
कर दिया हाफ़िज़े में हश्र बपा
शबाब नाम है उस जाँ-नवाज़ लम्हे का
मोहब्बत है अज़िय्यत है हुजूम-ए-यास-ओ-हसरत है