सारा जहाँ है चाँद की किरनों से सीम-गूँ
छाया है दहर पर शब-ए-महताब का फ़ुसूँ
आँखें खुली हैं तारों की बेदार है फ़ज़ा
ऐसे में भी जो सोए मैं अब इस को क्या कहूँ
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(666) Peoples Rate This
तैरे गीतों की लय अरे तौबा
फ़िदा-ए-मंज़िल-ए-बे-जादा हैं ख़ुदा रक्खे
कोई जंगल में गा रहा है गीत
इस हाथ से जो कुछ मैं लिया करता हूँ
मिरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर 'अख़्तर'
कुछ फ़ैज़ तो मैं ने भी लुटाया बारे
शोले भड़काओ देखते क्या हो
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
उमर भर जीने की तोहमत भी उठेगी या-रब
बातें करने में फूल झड़ते हैं
गोशा-ए-बाग़ और बज़्म-ए-तरब
कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं