सच तो ये है जहाँ में मेरे ब'अद
नग़्मे दिन रात यूँही बरसेंगे
और क्या क्या हसीन ज़मज़मे हाए
मेरे ज़ौक़-ए-नवा को तरसेंगे
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फुवार, अब्र, परिंदों के गीत, मस्त हवा
हमेशा वक़्त-ए-सहर जब क़रीब होता है
ऐ बख़्त! मज़े कुछ तो उठाऊँ मैं भी
फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद
उस से पूछे कोई चाहत के मज़े
अब वो सीना है मज़ार-ए-आरज़ू
रंग ओ बू में डूबे रहते थे हवास
मौत की सी पुर-सुकूँ वीरानियाँ
फ़ज़ा है नूर की बारिश से सीम-गूँ इस वक़्त
बातें करने में फूल झड़ते हैं
हरगिज़ नहीं जीने से दिल-ए-ज़ार ख़फ़ा
मिला के क़तरा-ए-शबनम में रंग ओ निकहत-ए-गुल