फुवार, अब्र, परिंदों के गीत, मस्त हुआ
भरे कटोरों की सूरत छलक रही है फ़ज़ा
बहार कान में कुछ कह रही है मुझ से मगर
वो बे-ख़ुदी है कि मैं कुछ समझ नहीं सकता
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Wasi Shah
Gulzar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(736) Peoples Rate This
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
सदा कुछ ऐसी मिरे गोश-ए-दिल में आती है
शोले भड़काओ देखते क्या हो
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है
मौत की सी पुर-सुकूँ वीरानियाँ
मिरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर 'अख़्तर'
गोशा-ए-बाग़ की मुलाक़ातें
तश्कीक ने ईक़ान से महरूम रखा
तक़दीर-ए-अज़ल आह तो भरती होगी
इलाज-ए-'अख़्तर'-ए-ना-काम क्यूँ नहीं मुमकिन
फ़ुग़ान-ए-ग़म सुरूद-ए-अंजुमीं मालूम होती है