पानी ले सकते हैं दरिया से मगर कूज़े में हम
बहते दरिया की रवानी बंद कर सकते नहीं
शेर यूँ कहने को कह लें लेकिन 'अख़्तर' सच ये है
दिल के महसूसात को लफ़्ज़ों में भर सकते नहीं
Wasi Shah
Anwar Masood
Gulzar
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Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
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कुछ अपनी सताइश में मज़ा आता है
पिहना-ए-आसमाँ पे हैं तारी उदासियाँ
जाँ-सिपारी के भी अरमाँ ज़िंदगी की आस भी
सुब्ह की तनवीर बन कर आई वो नाज़ुक-ख़िराम
आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया
इस मईशत के साए में हमदम
चर्ख़ की सई-ए-जफ़ा कोशिश नाकारा है
ये हसीन फ़ितरत के हुस्न का अनीला-पन
जब से मुँह को लग गई 'अख़्तर' मोहब्बत की शराब
दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है
आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है
याद-ए-माज़ी अज़ाब है या-रब