नींद आती है इस तरह शब को
जैसे पीने में नश्शा चढ़ता है
सुब्ह इस तरह सो के उठते हैं
जैसे सैलाब आगे बढ़ता है
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Wasi Shah
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सीना ख़ूँ से भरा हुआ मेरा
गोशा-ए-बाग़ और बज़्म-ए-तरब
मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है
कुछ अपनी सताइश में मज़ा आता है
फ़ुग़ान-ए-ग़म सुरूद-ए-अंजुमीं मालूम होती है
रंग ओ बू में डूबे रहते थे हवास
है ग़म-ए-रोज़गार का मौज़ूअ
इस रुपहली शराब-ए-नूरीं से
ये आरज़ुएँ ये जोश-ए-अलम ये सैल-ए-नशात
सारा जहाँ है चाँद की किरनों से सीम-गूँ
हवा थी ठंडी ठंडी चाँदनी थी और दरिया था
कर दिया हाफ़िज़े में हश्र बपा