नसीम, फूलों की रौनक़, खिले हुए तारे
फ़ज़ा में छूट रहे हैं ज़िया के फ़व्वारे
रुख़-ए-हसीना-ए-फ़ितरत से उठ गई है नक़ाब
नज़र को ढूँड रहे हैं हसीन नज़्ज़ारे
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कुछ अपनी सताइश में मज़ा आता है
सीना ख़ूँ से भरा हुआ मेरा
बहार आई ज़माना हुआ ख़राबाती
हयात इंसाँ की सर ता पा ज़बाँ मालूम होती है
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता
दिल-ए-हसरत-ज़दा में एक शोला सा भड़कता है
इधर दिमाग़ हैं साकित दिलों को सकता है
कोई जंगल में गा रहा है गीत
कोई रोए तो मैं बे-वजह ख़ुद भी रोने लगता हूँ
हाए क्या क़हर थी वो पहली नज़र
क्या ख़ाक करम है जो मुझे तू बख़्शे
जो हो न सका हम से वो कर जाओ तुम