नश्शा-ए-ख़्वाब में मदहोश है सारी दुनिया
हर तरफ़ छट गए हैं ज़ुल्मत-ए-शब के पर्दे
रात वीरान है और मैं ये दुआ करता हूँ
मेरे दिल में जो ख़ला है उसे कोई भर दे
Faiz Ahmad Faiz
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ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम
कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
कोई रोए तो मैं बे-वजह ख़ुद भी रोने लगता हूँ
फ़ुग़ान-ए-ग़म सुरूद-ए-अंजुमीं मालूम होती है
दिल तो रोए मगर मैं गाए जाऊँ
जी को नाहक़ निढाल करते हो
हमेशा वक़्त-ए-सहर जब क़रीब होता है
तक़दीर-ए-अज़ल आह तो भरती होगी
फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद
सुनने वाले फ़साना तेरा है
क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं