किसी ख़याल में मदहोश जा रहा था मैं
अँधेरी रात थी तारीकियों की बारिश थी
निकल गई कोई दोशीज़ा दिल को छूती हुई
ये मेरे साज़-ए-जवानी की पहली लर्ज़िश थी
Wasi Shah
Allama Iqbal
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(780) Peoples Rate This
ऐ बख़्त! मज़े कुछ तो उठाऊँ मैं भी
तब्अ इशरत-पसंद रखता हूँ
दिल को बर्बाद किए जाती है
ये बोसीदा फटी गुदड़ी ये सूराख़ों भरी कमली
गोशा-ए-बाग़ और बज़्म-ए-तरब
क़सम इन आँखों की जिन से लहू टपकता है
मैं दिल को चीर के रख दूँ ये एक सूरत है
उमर भर जीने की तोहमत भी उठेगी या-रब
आह! मर्ग-ए-आरज़ू का माजरा अब क्या कहूँ
जो पूछता है कोई सुर्ख़ क्यूँ हैं आज आँखें
दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है
झूमती है फ़ज़ा-ए-दश्त-ओ-जबल