ख़ूँ-भरे जाम उंडेलता हूँ मैं
टीस और दर्द झेलता हूँ मैं
तुम समझते हो शेर कहता हूँ
अपने ज़ख़्मों से खेलता हूँ मैं
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ये शीरीं राग मेरे हाफ़िज़े को जगमगाता है
दिल को बर्बाद किए जाती है
गोशा-ए-बाग़ की मुलाक़ातें
ये आरज़ुएँ ये जोश-ए-अलम ये सैल-ए-नशात
यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था
पानी ले सकते हैं दरिया से मगर कूज़े में हम
है ग़म-ए-रोज़गार का मौज़ूअ
ये सनम रिवायत-ओ-नक़्ल के हुबल-ओ-मनात से कम नहीं
नसीम, फूलों की रौनक़, खिले हुए तारे
मोहब्बत है अज़िय्यत है हुजूम-ए-यास-ओ-हसरत है
मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है
इक तीर कलेजे में पिरोया हम ने