कर दिया हाफ़िज़े में हश्र बपा
और माज़ी में ज़िंदगी भर दी
उँगलियों को फ़ज़ा में लहरा कर
तू ने इक दास्ताँ रक़म कर दी
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Rahat Indori
Wasi Shah
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Gulzar
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साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
चर्ख़ की सई-ए-जफ़ा कोशिश नाकारा है
लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या
वो यास कि उम्मीद कि चश्मे फूटें
मुतरिब-ए-दिल की वो तानें क्या हुईं
सारा जहाँ है चाँद की किरनों से सीम-गूँ
गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
इस हाथ से जो कुछ मैं लिया करता हूँ
ये बोसीदा फटी गुदड़ी ये सूराख़ों भरी कमली
ज़ख़्म खाने के दिन गए लेकिन
सई-ए-राहत हो गई ख़्वाब-ओ-ख़याल
हल्की हल्की फुवार के दौरान में