झूमती है फ़ज़ा-ए-दश्त-ओ-जबल
आलम-ए-वज्द में है रूह मिरी
मैं ये कहता हूँ ऐ सितार-नवाज़!
कोई जादू है उँगलियों में तिरी
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कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
इलाज-ए-'अख़्तर'-ए-ना-काम क्यूँ नहीं मुमकिन
ये साग़र-ए-ग़म की गर्दिश है सहबा-ए-तरब का दौर है ये
बुत लाखों मोहब्बत में तराशे ऐसे
दिल तो रोए मगर मैं गाए जाऊँ
मोहब्बत! ऐ कि तू देवी है ग़म की रोए जा
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
हयात इंसाँ की सर ता पा ज़बाँ मालूम होती है
जाँ-सिपारी के भी अरमाँ ज़िंदगी की आस भी
आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है
सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम
ये शीरीं राग मेरे हाफ़िज़े को जगमगाता है