इस रुपहली शराब-ए-नूरीं से
काश मैं जाम-ए-शेर भर सकता!
ऐ शब-ए-मह के मुंतशिर जल्वो!
काश मैं तुम को नज़्म कर सकता
Gulzar
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ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ
तब्अ इशरत-पसंद रखता हूँ
इस तरह तबीअत कभी शैदा न हुई
कोई रोए तो मैं बे-वजह ख़ुद भी रोने लगता हूँ
मैं दिल को चीर के रख दूँ ये एक सूरत है
ग़म-ए-हयात कहानी है क़िस्सा-ख़्वाँ हूँ मैं
किसी से लड़ाएँ नज़र और झेलें मोहब्बत के ग़म इतनी फ़ुर्सत कहाँ
हमेशा वक़्त-ए-सहर जब क़रीब होता है
जी को नाहक़ निढाल करते हो
उजड़ी दुनिया को बसाया है ज़रा देखो तो
हाए क्या क़हर थी वो पहली नज़र
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था