हो के बे-फ़िक्र तान उड़ाए जा
रागनी अपने मन की गाए जा
ग़म न कर रोज़गार का प्यारे
इश्क़ की बाँसुरी बजाए जा
Parveen Shakir
Habib Jalib
Gulzar
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Jaun Eliya
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पानी ले सकते हैं दरिया से मगर कूज़े में हम
गीत के हाथों लुटा जाता हूँ मैं
मोहब्बत है अज़िय्यत है हुजूम-ए-यास-ओ-हसरत है
रात को बैठ कर लब-ए-दरिया
इक टीस कलेजे को मसलती ही रही
आता नहीं साँसों में मज़ा पीने का
तिरा आसमाँ नावकों का ख़ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है
सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
हवा थी ठंडी ठंडी चाँदनी थी और दरिया था