हवाएँ ख़ुनुक चाँदनी पुर-सुकूँ
वफ़ूर-ए-मसर्रत से सरशार हूँ
ये ख़्वाहिश है इस वक़्त दिल में कि मैं
गुज़रते हुए वक़्त को रोक लूँ
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हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
कुछ फ़ैज़ तो मैं ने भी लुटाया बारे
बातें करने में फूल झड़ते हैं
जिन को है ऐश-ए-दिल मयस्सर, वो
आफ़ात-ओ-हवादिस से भरी है दुनिया
दिल तो रोए मगर मैं गाए जाऊँ
मैं दिल को चीर के रख दूँ ये एक सूरत है
गोशा-ए-बाग़ और बज़्म-ए-तरब
तब्अ इशरत-पसंद रखता हूँ
शबाब नाम है उस जाँ-नवाज़ लम्हे का
ये बोसीदा फटी गुदड़ी ये सूराख़ों भरी कमली