हवा थी ठंडी ठंडी चाँदनी थी और दरिया था
कहीं नज़दीक ही जंगल में कोई गीत गाता था
फ़ज़ा में रस भरे नग़्मों की हल्की हल्की बारिश थी
मिरे दामन में छम-छम आँसुओं का मेंह बरसता था
Wasi Shah
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हल्की हल्की फुवार के दौरान में
ग़म-ए-दिल का इलाज दुनिया में
शोले भड़काओ देखते क्या हो
फ़ज़ा उमडी हुई है इक छलकते जाम की मानिंद
चर्ख़ की सई-ए-जफ़ा कोशिश नाकारा है
ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ
वो यास कि उम्मीद कि चश्मे फूटें
मुतरिबा जब सदा-ए-साज़ के साथ
लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या
जी को नाहक़ निढाल करते हो
हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें
जब से मुँह को लग गई 'अख़्तर' मोहब्बत की शराब