हर तरफ़ एक बे-हिजाबी है
बे-नक़ाबी ही बे-नक़ाबी है
तुम भी आ जाओ चाँदनी बन कर
आज की रात माहताबी है
Jaun Eliya
Wasi Shah
Rahat Indori
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Anwar Masood
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
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रगों में दौड़ती हैं बिजलियाँ लहू के एवज़
बातें करने में फूल झड़ते हैं
ज़ख़्म खाने के दिन गए लेकिन
दिल तो रोए मगर मैं गाए जाऊँ
अब कहाँ हूँ कहाँ नहीं हूँ मैं
पानी ले सकते हैं दरिया से मगर कूज़े में हम
उजड़ी दुनिया को बसाया है ज़रा देखो तो
जा रहा था मैं सर झुकाए हुए
तमाम उम्र मैं आँसू बहाऊँगा 'अख़्तर'
आब-ए-दरिया में है जिस तरह रवानी पिन्हाँ
मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों में
इधर दिमाग़ हैं साकित दिलों को सकता है