हमेशा वक़्त-ए-सहर जब क़रीब होता है
हवाएँ चलती हैं सारा जहान सोता है
तुझे ख़बर नहीं ओ ग़म से बे-ख़बर! उस वक़्त
तिरे पड़ोस में इक ग़म-नसीब रोता है
Jaun Eliya
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Gulzar
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नश्शा-ए-ख़्वाब में मदहोश है सारी दुनिया
उमर भर जीने की तोहमत भी उठेगी या-रब
सीना ख़ूँ से भरा हुआ मेरा
जिन को है ऐश-ए-दिल मयस्सर, वो
आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया
ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ
सुनने वाले फ़साना तेरा है
कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
जो दाग़ बन के तमन्ना तमाम हो जाए
शबाब नाम है उस जाँ-नवाज़ लम्हे का
रगों में दौड़ती हैं बिजलियाँ लहू के एवज़
सुब्ह की तनवीर बन कर आई वो नाज़ुक-ख़िराम