है ग़म-ए-रोज़गार का मौज़ूअ
इक चमन जिस में गुल नहीं खिलते
चाहता हूँ कि कुछ लिखूँ इस पर
लेकिन अल्फ़ाज़ ही नहीं मिलते
Jaun Eliya
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तक़दीर-ए-अज़ल आह तो भरती होगी
रंग ओ बू में डूबे रहते थे हवास
ये साग़र-ए-ग़म की गर्दिश है सहबा-ए-तरब का दौर है ये
तिरा आसमाँ नावकों का ख़ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना
मैं किसी से अपने दिल की बात कह सकता न था
कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
चीर कर सीने को रख दे गर न पाए ग़म-गुसार
जीने की ब-ज़ाहिर नहीं कुछ आस हमें
ऐ बख़्त! मज़े कुछ तो उठाऊँ मैं भी
सच तो ये है जहाँ में मेरे ब'अद
उमर भर जीने की तोहमत भी उठेगी या-रब
सारा जहाँ है चाँद की किरनों से सीम-गूँ