गुलशन-ए-आरज़ू की दीद के ब'अद
यास का ख़ार-ज़ार भी देखो
की बहारों की ख़ूब सैर 'अख़्तर'
अब ख़िज़ाँ की बहार भी देखो
Habib Jalib
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जो पूछता है कोई सुर्ख़ क्यूँ हैं आज आँखें
मोहब्बत! ऐ कि तू देवी है ग़म की रोए जा
पानी ले सकते हैं दरिया से मगर कूज़े में हम
नश्शा-ए-ख़्वाब में मदहोश है सारी दुनिया
चर्ख़ की सई-ए-जफ़ा कोशिश नाकारा है
आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है
सुनने वाले फ़साना तेरा है
दिल तो रोए मगर मैं गाए जाऊँ
फिरती हूँ लिए सोज़-ए-हयात आँखों में
मिला के क़तरा-ए-शबनम में रंग ओ निकहत-ए-गुल
मुतरिबा जब सदा-ए-साज़ के साथ
जिन को है ऐश-ए-दिल मयस्सर, वो